इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पत्नी के पागल होने को कारण बताते हुए तलाक की मांग करने वाले पति की याचिका खारिज कर दी है। इसके साथ ही कहा कि पागलपन के आधार पर तलाक की मांग करने वाले पति को ही साक्ष्य के आधार पर अपनी बातों को साबित भी करना होगा। कोर्ट ने कहा कि मानसिक बीमारी के आधार पर तलाक के लिए ऐसी बीमारी होनी चाहिए जिसमें दिमाग का अपूर्ण विकास हो, मनोरोगी विकार सहित दिमाग का कोई अन्य विकार या विकलांगता शामिल है। इसके अलावा ऐसा मानसिक विकार जिसके चलते पीड़ित व्यक्ति असामान्य रूप से आक्रामक या गंभीर रूप से गैर-जिम्मेदाराना आचरण करे। कोर्ट ने कहा कि अपने दावे को अपीलकर्ता साबित नहीं कर पाया। न्यायमूर्ति एसडी सिंह व न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने शिव सागर की अपील पर यह आदेश दिया।
फतेहपुर निवासी शिवसागर का विवाह 2005 में हुआ था। लगभग सात वर्षों तक दोनों एक साथ रहे। उनकी दो बेटियां हुईं। विवाद के चलते पति-पत्नी जनवरी 2012 से अलग-अलग रह रहे हैं। शिवसागर ने पागलपन और क्रूरता के आधार पर ट्रायल कोर्ट में तलाक के लिए अपील दाखिल की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया। इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।
कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता को यह साबित करना था कि उसकी पत्नी लाइलाज मानसिक बीमारी से पीड़ित है। कोर्ट ने कहा कि मानसिक बीमारी के आधार पर तलाक के लिए ऐसी बीमारी होनी चाहिए जिसमें दिमाग का अपूर्ण विकास हो, मनोरोगी विकार सहित दिमाग का कोई अन्य विकार या विकलांगता शामिल है। इसके अलावा ऐसा मानसिक विकार जिसके चलते पीड़ित व्यक्ति असामान्य रूप से आक्रामक या गंभीर रूप से गैर-जिम्मेदाराना आचरण करे।
कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने पाया कि प्रतिवादी एक सुशिक्षित महिला थी जिसने स्नातक की पढ़ाई पूरी की थी। दोनों पक्ष सात साल तक वैवाहिक रिश्ते में रहे। कोर्ट ने कहा कि ऐसी कोई सामग्री या सबूत प्रस्तुत नहीं की गई, जिससे ट्रायल कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप किया जाए। कोर्ट ने अपील खारिज कर दी।