सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल मेडिकल कमिशन (एनएमसी) की एक्सपर्ट कमिटी को आदेश दिया है कि वो एमबीबीएस एडमिशन को लेकर तय विकलांग कोटा गाइडलाइंस की समीक्षा करे। शीर्ष अदालत ने एनएमसी से कहा है कि वो विकलांगता के आकलन के लिए केंद्र की मार्च 2024 की अधिसूचना को ध्यान में रखकर अपनी सिफारिशों को रिव्यू करे। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश एमबीबीएस में दाखिला चाह रहे एक अभ्यर्थी की याचिका पर आया है। इस छात्र को मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति के कारण विकलांग कोटे से आरक्षण देने से वंचित कर दिया गया था। जस्टिस पीएस नरसिम्हा और पंकज मिथल की पीठ ने एनएमसी को आदेश दिया कि वह आठ सप्ताह के भीतर इस संबंध में हलफनामा दायर करे।
एमबीबीएस अभ्यर्थी ने साल 2022 में अदालत में यह याचिका दायर की थी। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक अभ्यर्थी खराब मानसिक स्थिति से जूझ रहा है जिसका स्तर भारतीय विकलांगता मूल्यांकन आकलन पैमाने (आईडीईएएस) पर 40 फीसदी से ज्यादा है। छात्र की मानसिक स्वास्थ्य के देखते हुए दिव्यांगता प्रमाणन बोर्ड की सलाह पर उसे दिव्यांगता कोटे से मेडिकल कोर्स में एडमिशन देने से इनकार कर दिया गया।’
इस याचिका के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने मई 2023 में एनएमसी को निर्देश दिया था कि वो एमबीबीएस एडमिशन के लिए मानसिक बीमारी, सीखने की विशिष्ट अक्षमताओं और ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकारों वाले छात्रों में दिव्यांगता का आकलन करने के नए तरीकों की जांच के लिए एक विशेषज्ञ पैनल का गठन करे। कोर्ट के निर्देश के बाद एनएमसी ने एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया और दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत विशिष्ट दिव्यांगताओं वाले छात्रों को एडमिशन देने के लिए गाइडलाइंस बनाईं। रिपोर्ट के मुताबिक सितंबर तक एनएमसी ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि मानसिक बीमारियों से ग्रस्त छात्र-छात्राएं बिना किसी रोक-टोक के अंडरग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन के लिए पात्र होंगे। एनएमसी की रिपोर्ट के मुताबिक मानसिक बीमारी वाले स्टूडेंट्स को मेडिकल कोर्स में एडमिशन लेने से नहीं रोका जाएगा, बशर्ते कि उसने नीट यूजी में आवश्यक कंपीटिटिव रैंक हासिल की हो। इसके बाद इस साल 12 मार्च को सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने मानसिक दिव्यांगता समेत विशिष्ट दिव्यांगताओं का आकलन करने के लिए विस्तृत गाइडलाइंस का एक नोटिफिकेशन जारी किया।
एमबीबीएस करने के लिए बांग्लादेश क्यों जाते हैं भारतीय छात्र
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग के माध्यम से व्यक्तियों में विभिन्न निर्दिष्ट विकलांगताओं की सीमा का आकलन करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इन विकलांगताओं में चलने-फिरने में अक्षमता, दृष्टि दोष, क्रोनिक न्यूरोलॉजिकल विकार और मानसिक बीमारी शामिल हैं।
एमबीबीएस में दाखिला चाह रहे याचिकाकर्ता ने बौद्धिक अक्षमताओं (विशिष्ट शिक्षण विकलांगता – एसएलडी और ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार – एएसडी ) वाले व्यक्तियों के लिए विकलांगता के आकलन के नियमों को लेकर चिंता जताई है। याचिका में अभ्यर्थी ने कहा है कि सभी छात्रों की पहुंच मेडिकल एजुकेशन में एक समान होनी चाहिए, चाहे उनकी विकलांगता कैसी भी हो।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि दुनिया के बहुत से देशों में मानसिक समस्या से जूझ रहे छात्रों को मेडिकल एजुकेशन में दाखिला लेने की इजाजत दी जाती है।