ऐप पर पढ़ें
Allahabad High Court: एशिया के सबसे बड़े और व्यस्ततम उच्च न्यायालयों में सबसे ऊपर इलाहाबाद हाईकोर्ट पर पिछले कुछ वर्षों से मुकदमों का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। मुकदमों की संख्या बढ़ने की सबसे बड़ी वजह यहां जजों के 35 से 40 फीसदी पदों का न भरा जाना है। इस समय भी 45 प्रतिशत पद रिक्त हैं। इसके बावजूद इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है जबकि पिछले चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम ने हाईकोर्ट का न्यायाधीश बनाने के लिए कई वकीलों के नाम भेजे थे।
इस उच्च न्यायालय में जजों की कुल संख्या 160 है लेकिन वर्तमान समय में चीफ जस्टिस के अलावा केवल 89 न्यायाधीश ही कार्यरत हैं। इनमें 63 प्रयागराज में और 26 लखनऊ खंडपीठ में हैं। एशिया के सबसे बड़े हाईकोर्ट में विगत कई वर्षों से न्यायाधीशों की नियुक्तियां बहुत ही शिथिल तरीके तरीके से की जा रही है। यहां अंतिम नियुक्ति तीन जजों की 27 फरवरी 2023 को हुई थी। जजों के पद रिक्त होने और नई नियुक्तियां न होने का खामियाजा वादकादियों और आम अधिवक्ताओं को सबसे ज्यादा उठाना पड़ रहा है।
दूसरी ओर रिक्तियों की संख्या बढ़ती जा रही है। मई 2024 से जनवरी 2025 के बीच 11 न्यायाधीश रिटायर हो जाएंगे। मई से जून 2024 के बीच न्यायमूर्ति गजेन्द्र कुमार, न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा, न्यायमूर्ति रेनू अग्रवाल, न्यायमूर्ति साधना रानी ठाकुर एवं न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी की सेवानिवृत्ति होनी है।
जुलाई 2024 से जनवरी 2025 के बीच जस्टिस शिवशंकर प्रसाद, जस्टिस मयंक कुमार जैन, जस्टिस नरेन्द्र कुमार जौहरी, न्यायमूर्ति अरविन्द सिंह सांगवान, जस्टिस सुरेन्द्र सिंह प्रथम एवं जस्टिस फैज आलम खां रिटायर हो जाएंगे।
यही नहीं, पिछले दिनों तीन न्यायाधीशों का इलाहाबाद से स्थानान्तरण भी हुआ है। इनमें न्यायमूर्ति विवेक कुमार सिंह, न्यायमूर्ति राजेन्द्र कुमार चतुर्थ एवं न्यायमूर्ति सूर्यप्रकाश केसरवानी शामिल हैं।वर्तमान में इस उच्च न्यायालय की प्रधान पीठ में 4,49,684 सिविल और 4,20,164 क्रिमिनल यानी कुल 8,69,848 मामले लम्बित हैं।
इसी तरह लखनऊ बेंच में सिविल के 1,21,867 एवं क्रिमिनल के 83,931 यानी कुल 2,05,798 केस लम्बित हैं। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि इस समय एक न्यायाधीश पर 12 हजार से ज्यादा मुकदमों का बोझ है। गौरतलब है कि कॉलेजियम सिस्टम में जजों की रिक्तियां भरने की प्रक्रिया काफी जटिल व लम्बी है। ऐसे में इलाहाबाद हाईकोर्ट की स्थिति को गंभीरता से नहीं लिया गया तो लम्बित मुकदमों की संख्या विकराल रूप धारण कर सकती है।