लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दल अब पूरी तरह से मैदान में आ चुके हैं। सात चरणों में होने वाले लोकसभा चुनाव के पहले फेस की शुरुआत पश्चिमी यूपी से होगी। वेस्ट की कैरान सीट की बात करें तो यहां इस बार लोकसभा चुनाव बेहद दिलचस्प होने वाला है। कैराना लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर सियासी जंग छिड़ चुकी है। इस चुनाव में इस पर चौदह प्रत्याशी अपनी ताल ठोक रहे है। इनमें रालोद गठबंधन में भाजपा ने दूसरी बार प्रदीप चौधरी पर दांव खेला है। दूसरी ओर कांग्रेस से गठबंधन में सपा ने इकरा हसन को प्रत्याशी बनाया है, जबकि बसपा से श्रीपाल राणा प्रत्याशी है। इसके अलावा पांच प्रत्याशी अन्य दलों से है। कैराना लोकसभा सीट पर 17 लाख 19 हजार 11 मतदाता है। शामली जिले में आने वाली एक मात्र संसदीय सीट कैरान में कांग्रेस के लिए 40 साल से सूखा पड़ा है। 1984 के बाद से कांग्रेस यहां कभी नहीं जीती।
वहीं भाजपा और रालोद इस सीट पर तीन और सपा, बसपा एक-एक कब्जेदारी जमा चुकी है। 2014 में मोदी लहर के दौरान भाजपा ने एक बार फिर इस सीट पर परचम लहराया था, लेकिन 2018 में हुए उपचुनाव में भाजपा ये सीट हार गई, लेकिन 2019 में हुए इलेक्शन में भाजपा एक बार फिर इस सीट पर काबिज हुई है। 2024 के चुनाव की बात करें तो कांग्रेस के सामने जहां एक ओर 40 साल का सूखा खत्म करने की चुनौती है तो वहीं भाजपा भी इस सीट को छोड़ने के मूड में कतई नहीं है। भाजपा मोदी मैजिक पर भरोसा जताए बैठी है। कैराना में इस बार जनता का क्या मूड है इस बारे में जानने के लिए लाइव हिंदुस्तान की टीम लोकसभा क्षेत्र पहुंची और सपा और कांग्रेस गठबंधन प्रत्याशी इकरा हसन से लोकसभा चुनाव को लेकर विस्तार से बातचीत की।
दिल्ली और लंदन में पढ़ाई, लोकसभा चुनाव लड़ने का कैसे आया ख्याल?
सपा-कांग्रेस गठबंधन प्रत्याशी इकरा हसन ने बताया, जब मैं बाहर पढ़ रही थी, वापस आई तो मेरी मदर और भाई पर मुकदमे हुए, जिसे तरह से विपक्ष वालों के साथ केंद्र और यूपी सरकार कर रही है। विदेश से आने के बाद 2022 का विधानसभा चुनाव हुआ था। उसमें मैं ही घर पर थी, लेकिन उन्होंने कैंपेनिंग की। उसके बाद से लगातार मैं जनता के बीच रही। जनता के बीच हमेशा ही आना-जाना रहा। एक चीज के बाद बदलाव आता गया, लेकिन ये सब 2022 के चुनाव के बाद ही हुआ।
2022 के विधानसभा और 2024 के चुनाव में आपको क्या अंतर लगा?
इकरा हसन कहती हैं कि वो विधानसभा चुनाव था और लोकसभा चुनाव अपने आप में बड़ा चुनाव है। हमारी लोकसभा सीट लगभग 150 किलोमीटर की है तो वह एरिया कवर करना बहुत बड़ी अपने आप में एक चुनौती है। फर्क है बहुत, उस टाइम क्यों कि मैं नहीं थी तो भी चुनौती लगी रही थी, लेकिन उसके मुकाबले भी एक बड़ी चुनौती है। इस चुनाव में मैं खुद सपा से प्रत्याशी हूं, इसलिए प्रेशर अलग है। किसी और के लिए चुनाव के लिए वोट मांगना और अपने लिए वोट मांगने में अंतर है।
आरएलडी से अलग होने के बाद जाट वोट आपसे अलग होगा या आपके साथ?
इकरा हसन ने लाइव हिन्दुस्तान को बताया, 2022 के विधानसभा चुनाव में शामली जिले में तीन विधानसभा सीटें आती हैं। तीनों की सीटों पर भाजपा विधानसभा चुनाव में हारी थी। जो आरएलडी के प्रत्याशी थे वो भाजपा के सामने ही लड़े थे। हमारे जिले का जो मूड है, वह भाजपा के खिलाफ है। भले ही गठबंधन हो गया हो लेकिन जिन्होंने वोट दिए थे उनकी भाजपा के साथ विचारधारा नहीं मिलती। इसलिए आरएलडी के जाने से कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है, जो 2022 में भाजपा के खिलाफ थे वह आज भी भाजपा के खिलाफ हैं। यहां के लोगों में भाजपा को लेकर बेहद नाराजगी है। कुछ प्रतिशत लोग ऐसे हो सकते हैं जो भाजपा की तरफ मन बना लें, लेकिन जो ज्यादातर यहां पर किसान वर्ग है और 2022 के चुनाव के हिसाब से आंकलन करें तो यहां के लोगों का मूड एंटी भाजपा है। यहां पर अभी तक कुछ निस्तारण नहीं हुआ है। कुछ चीजों का वायदा पूरा हुआ होता तो एमएसपी का दावा, गन्ना मिलों का पुराना भुगतान हो गया होता था तो शायद कुछ बदलाव देखने को मिलता। ये बहुत जल्दबाजी में हुआ है, कुछ भी वादे पूरे नहीं हुए हैं, जो समस्याएं थीं वह अभी भी हैं। खासकर यहां पर लोग भाजपा और सांसद का विरोध कर रहे हैं।
सहारनपुर से सपा के लिए कितना चैलेंज?
सहारनपुर में सपा के लिए चुनौती के सवाल पर इकरा ने कहा, सहारनपुर जिले में आने वाली नकुड़ विधानसभा क्षेत्र में 2022 के चुनाव में कुल 500 वोटों से भाजपा जीती थी। वहां भाजपा ने परचम लहराया था लेकिन लोकसभा चुनाव में हमें पूरी उम्मीद है कि सपा की जीतेगी। क्योंकि अगर पुराने रिकॉर्ड उठाकर देखेंगे तो मेरी मदर 2018 में लडीं, 2019 में भी लड़ीं। 2019 में हम सभी विधानसभाओं में हारे तो नकुड़ विधानसभा क्षेत्र से जीत मिली थी। वह मेरी मदर का होम टाउन है, इसलिए वहां से उम्मीद है कि हम जीतेंगे। गंगू विधानसभा से चौधरी परिवार और काजी परिवार ने विधानसभा का चुनाव लड़ा था, आज वह इंडिया गठबंधन के साथ है। दोनों के वोट शेयरिंग अगर मिला लें तो भी ये सीट हम ही जीतेंगे।
क्या कारण थे कि प्रदीप चौधरी की 2019 में जीत हुई और आपकी मां को हार का सामना करना पड़ा?
2019 के चुनाव में और 2024 के चुनाव में जो मेजर फर्क है मैं महसूस कर रही हूं, उस दौरान जो नेशनल मुद्दे थे वह लोकल मुद्दों पर हावी हो रहे थे। उसी की वजह से एक चेहरे पर जो भाजपा चुनाव लड़ने का काम करती है ये इनका फंडा 2019 में चला था। पहली बार 2014 में चला था, लेकिन इस बार वह नहीं चल पाएगा। हम जो देख रहे हैं या हमने क्षेत्र के लोगों से बातचीत के आधार पर जो महसूस किया है और जिस तरह से बड़े तादाद में अक्सर भाजपा को वोट करने वाले लोग थे वह हमारे साथ जुड़ रहे हैं। उनकी जो नाराजगियां पड़ रही हैं वह यही हैं कि उनके लोकल मुद्दे और लोकल इश्यू रहे हैं, उनका निस्तारण यहां के स्थानीय जनप्रतिनिधि नहीं करवा पाए हैं। उन्हें दिक्कत पार्टी से न हो या पार्टी की लीडरशिप से न हो लेकिन जो स्थानीय जनप्रतिनिधि हैं उनसे बहुत दिक्कत हैं। इसलिए मैं कहना चाहती हूं कि लोकल इश्यू इसबार हावी हैं नेशनल मुद्दों पर। दो बार लोगों ने राष्ट्रीय मुद्दों पर वोट देकर देख लिया है। आप किसी भी सत्ता में हैं, यहां डबल इंजन की सरकार है। हमारे क्षेत्र में कोई लाभ नहीं हुआ है क्योंकि लाभ दिलाने का काम स्थानीय जनप्रतिनिधि करेगा।
लोगों को मजबूत आवाज चाहिए अपने जनप्रतिनिधि के रूप में, वह ही उन्हें लाभ दिला सकते हैं सत्ता का। वह अब तक उनके साथ हुआ नहीं है, इसलिए लोग अब परेशान हैं। कानून व्यवस्था के सवाल पर इकरा हसन ने कहा, जो लॉ एंड ऑर्डर की बात है। अगर सबसे बड़ा एग्जाम्बल दिमाग में आता है 2022 के बाद से वह जेसीबी प्रकरण चला है। जिस तरह से लोगों के मकान ढहाए गए हैं और बहुत सी जगह हमारे छोटे टाउन हैं, यहां जो गरीब लोग रह रहे थे कइयों को ये डर था कि उनके मकान न ढहा दिए जाएं। ये जो कार्रवाई चली है वह असंवैधानिक थी। इसको देखते हुए भाजपा लॉ एंड ऑर्डर की बात करने की स्थिति में नहीं है। जब भाजपा खुद ही लॉ एंड ऑर्डर और संविधान को दरकिनार कर एक तानाशाही की तरह कार्रवाई की है, वह अभी भी लोगों के दिमाग में है। इसी तरह से भाजपा काम करेगी तो उन्हें मुंह की खानी पड़ेगी। जो लोग लॉ एंड ऑर्डर की बात कर रहे हैं उन्हें पहले अपने गिरेबां में झांकर देखना चाहिए कि कितना उन्होंने लॉ एंड ऑर्डर स्थापित किया है।