Mukhar Ansari Crime History: जेल में बंद गैंगस्टर से नेता बने मुख्तार अंसारी की गुरुवार को उत्तर प्रदेश के बांदा में पेट दर्द की शिकायत के बाद दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई। सूत्रों का कहना है कि 60 साल के माफिया डॉन की ‘रोजा’ तोड़ने के बाद तबीयत बिगड़ गई थी। जेल में बेहोश होने के बाद डॉक्टरों की टीम बांदा जेल पहुंची जहां अंसारी को रखा गया था। इसके बाद हायर सेंटर के लिए बांदा मेडिकल अस्पताल ले जाया गया, जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। 1963 में यूपी के युसुफपुर में जन्मे मुख्तार के दादा आजादी की लड़ाई लड़ चुके हैं। नाना देश के लिए शहीद हुए। फिर कैसे इतने प्रतिष्ठित परिवार का लड़का अपराध की गलियों में जा पहुंचा और जल्द ही पूर्वांचल का माफिया डॉन बन गया।
30 जून 1963 को उत्तर प्रदेश के युसुफपुर में जन्मे मुख्तार अंसारी का अपराध की गलियों से सत्ता के गलियारों तक का सफर जितना विवादास्पद था उतना ही रोचक भी है। मुख्तार ने 80 के दशक में अपराध की दुनिया में कदम रखा। शुरू में मखनू सिंह गिरोह के साथ काम किया। 90 के दशक तक मुख्तार अपराध जगत में अपनी जगह बनाने के लिए हाथ-पांव मारने लगा। उसने गुडो की फौज खड़ी की और अपना ग्रुप ऐक्टिव कर लिया। यह वो वक्त था जब मुख्तार की मऊ, गाज़ीपुर, वाराणसी और जौनपुर जिलों में हनक हुआ करती थी।
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दादा स्वतंत्रता सेनानी
मुख्तार अंसारी के फैमिली हिस्ट्री की बात करें तो उसका परिवार एक प्रतिष्ठित राजनीतिक परिवार हुआ करता था। दादा मुख्तार अहमद अंसारी ने महात्मा गांधी के साथ देश की आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया था। 1926-27 के वक्त वो कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे। मुख्तार के नाना ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान ने 1947 में देश के लिए शहादत दी और मरणोपरांत महावीर चक्र से नवाजे गए। मुख्तार के पिता सुबहानउल्लाह की गाजीपुर में अच्छी छवि रही। इलाके में राजनीति से जुड़े लोग मुख्तार के पिता की इज्जत किया करते थे।
अपराध की दुनिया में कैसे बढ़ता गया कद
मुख्तार को शुरुआत से ही शॉर्टकट से टॉप पर जाने की सनक थी। इसलिए अपराध की दुनिया की कदम बढ़ाने शुरू किए। जल्द ही मुख्तार ने कोयला खनन, रेलवे निर्माण और अन्य क्षेत्रों से जुड़े कांट्रेक्ट पर नियंत्रण हासिल कर लिया। यह वो वक्त था जब पूर्वांचल में मुख्तार माफिया डॉन ब्रजेश सिंह को टक्कर देने लगा। उस वक्त मुख्तार और ब्रजेश सिंह के बीच अक्सर गैंगवार की खबरें सुर्खियां बटोरा करती थी। जल्द ही मुख्तार ने खुद को माफिया डॉन के रूप में स्थापित कर लिया।
1996 में पहली बार बना विधायक
एक वक्त ऐसा था जब मऊ और उसके आसपास के इलाके में मुख्तार अंसारी की तूती बोलती थी। हालांकि योगी सरकार के आने के बाद अंसारी के ठिकाने और हनक सभी जमींदोज हो चुके हैं। 1996 में मुख्तार अंसारी पहली बार विधायक बना। वह बीजेपी को छोड़कर यूपी की हर बड़ी पार्टी से जुड़ा। 24 साल तक यूपी की विधानसभा तक पहुंचा। पहली बार 1996 में BSP के टिकट पर चुनाव जीता। इसके बाद अंसारी ने मऊ सीट से 2002, 2007, 2012 और फिर 2017 में भी जीत हासिल की। आखिरी 3 बार के चुनाव जेल में रहते हुए जीते।
2002 में कैसे बदली जिंदगी
साल 2002 की एक घटना ने मुख्तार अंसारी की जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी। इसी साल बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय ने अंसारी परिवार के पास 1985 से रही गाजीपुर की मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट छीन ली। यह बात मुख्तार को इतनी नागवार गुजरी कि उसके कहने पर राय की हत्या करवा दी गई। बताया जाता है कि 29 नवंबर 2005 को एक कार्यक्रम से लौटते वक्त कृष्णानंद राय पर जानलेवा हमला हुआ। AK-47 राइफल से उनके शरीर पर 500 गोलियां दागी गई। इस घटना ने पूरे देश को हिला दिया था। राय समेत मौके पर सात लोगों की मौत हो गई थी।
एक के बाद एक करीब 65 केस मुख्तार अंसारी के ऊपर दर्ज हुए। इनमें आठ मामलों में मुख्तार को सजा भी हो चुकी थी। 21 मुकदमे विचाराधीन रहे। 2005 में मुख्तार अंसारी को पहली बार जेल हुई। तब से वह सलाखों के पीछे ही था। वाराणसी, आजमगढ़, मऊ, नई दिल्ली, पंजाब, चंदौली, सोनभद्र, आगरा, लखनऊ, बाराबंकी, बांदा में भी मुख्तार पर कई आपराधिक मामलों में केस दर्ज हुए।