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हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत गायिका शुभा मुद्गल जमीनी स्तर पर कला प्रदर्शन के लिए गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण की कमी और इसके प्रति सामान्य दृष्टिकोण से निराश हैं। पद्मश्री से सम्मानित गायिका कहती हैं, ‘हमारी प्रणाली में ऐसा कोई खास प्रोग्राम नहीं है, जो स्कूली बच्चों को भारत की समृद्ध कला परंपराओं के बारे में जानने का अवसर प्रदान करता हो।’
उन्होंने आगे कहा, ‘ज्यादातर मामलों में संगीत, नृत्य और अन्य कलाओं को शौक के रूप में या वैकल्पिक पाठ्येतर गतिविधियों के रूप में पढ़ाया जाता है, लेकिन अकसर ऐसी गतिविधियों के लिए आरक्षित समय को अन्य अतिरिक्त कक्षाओं के लिए आवंटित कर दिया जाता है, जिन्हें अधिक महत्वपूर्ण विषय माना जाता है।
वहीं जिन छात्रों को संगीत और नृत्य सीखने का अवसर दिया भी जाता है, उन्हें पाठ्यक्रम और इस कला को समझने के लिए प्रोत्साहित करने से ज्यादा प्रदर्शन के लिए तैयार किया जाता है।’ ‘अब के सावन..’ की गायिका 2016 और 2017 में क्यूरेटर के रूप में गोवा के सेरेन्डिपिटी आट्र्स फेस्टिवल से भी जुड़ी थीं। उनका मानना है कि संगीत समारोह कलाओं को उजागार करते हैं और अधिक श्रोता सामने आते हैं। इस वजह से कई कलाओं का और नए कलाकारों को देखने-सुनने का मौका मिलता है। एक छात्र, कलाकार, शिक्षक और संगीतकार के रूप में संगीत के साथ उनकी नियमित भागीदारी के अलावा, मुद्गल ने हाल ही में अपना पहला उपन्यास लॉन्च किया। दिल्ली की गायिका ने नाट्य तरंगिणी द्वारा परंपरा समारोह में प्रस्तुति दी थी।