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64 Yogini Mandir History: काशी के सीरिज में हम आपको आज चौसट्टी माता के मंदिर के बारे में बताएंगे. इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां माता के दर्शन करने मात्र से सभी पाप व परेशानियां नष्ट हो जाते हैं और ग्रहों …और पढ़ें
शिव की काशी पर मोहित हो गई थीं 64 योगिनियां
हाइलाइट्स
- काशी में स्थित है चौसट्टी माता का मंदिर.
- मंदिर में 64 योगिनियों की पूजा होती है.
- दर्शन-पूजन से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
‘देखी तुमरी काशी, जहां विराजैं विश्वनाथ विश्वेश्वरजी अविनाशी…’ हिंदी साहित्यकार भारतेन्दू हरिश्चंद्र की यह कविता काशी की सुंदरता का उल्लेख करती है. इसी सुंदरता और निरालेपन को देखने के लिए हर साल 10 करोड़ से ज्यादा पर्यटक शिवनगरी पहुंचते हैं. धार्मिक ग्रंथ बताते हैं कि 64 योगिनियां भी काशी आई थीं. मगर, उन्हें यह नगरी इतनी प्रिय लगी कि वे यहीं पर रह गईं और माता की चौसट्टी देवी के रूप में पूजा होती है. मान्यता है कि इस मंदिर में माता के दर्शन करने मात्र से सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं और नकारात्मक शक्तियां भी दूर रहती है. आइए जानते हैं काशी की चौसट्टी देवी मंदिर के बारे में खास बातें..
स्कंद पुराण में है यह पौराणिक कथा
स्कंद पुराण के काशीखंड में वर्णित है कि चौसट्टी माता के दर्शन-पूजन से पाप नष्ट हो जाते हैं. नवरात्र में इनकी आराधना से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. चौसट्टी घाट स्थित चौसट्टी या चौसठ योगिनी मंदिर के पीछे की कथा भी बहुत सुंदर है. ज्योतिषाचार्य पं. रत्नेश त्रिपाठी ने बताया है कि मान्यता है कि आनंदवनम या काशी में प्राचीन काल में दिवोदास नाम के राजा थे, जो धार्मिक प्रवृत्ति के थे लेकिन उन्हें भगवान शिव की आराधना पसंद नहीं थी. उन्होंने देवताओं के सामने शर्त रखी थी कि यदि शिव काशी छोड़ कर चले जाएं तो वे काशी को स्वर्ग की तरह बना देंगे.
देवताओं ने की बाबा विश्वनाथ से प्रार्थना
सभी देवताओं भोलेनाथ से प्रार्थना करने पहुंचें और उनको काशी छोड़ कर कैलाश चले जाने को कहा. भोलेनाथ ने देवताओं की प्रार्थना स्वीकार कर ली और कैलाश पर्वत पर जाकर रहने लगे. कुछ दिनों के बाद बाबा विश्वनाथ ने 64 योगिनियों को काशी भेजा. योगिनियों को काशी इतनी भा गई कि उन्होंने यहीं पर रहने की प्रार्थना भोलेनाथ से की. इन्हीं को चौसट्टी देवी के रूप में पूजा जाता है.
सभी मनोकामनाएं होती हैं पूरी
काशी के निवासी ज्ञानेश्वर पाण्डेय ने बताया कि मंदिर में महिषासुर मर्दिनी और चौसट्टी माता की प्रतिमा स्थापित है, जिनके दर्शन-पूजन से पुण्य की प्राप्ति होती है. मंदिर परिसर में मां भद्रकाली की भी प्रतिमा है. मान्यता है कि दर्शन-पूजन से समस्त मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं और कुंडली में ग्रहों की स्थिति भी मजबूत होती है. साथ ही माता की पूजा से सभी शत्रुओं और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है और घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहती है.
इस मंदिर से शुरू होती है काशी की होली
चौसट्टी घाट के क्षेत्र में स्थित मंदिर में मां महिषासुर मर्दिनी और मां काली का स्वरूप भी स्थित है, जहां प्रतिदिन दर्शन-पूजन के लिए भक्तगण बड़ी संख्या में पहुंचते हैं. नवरात्र और होली में यहां पर भक्तों का तांता देखने को मिलता है. मान्यता है कि बिना माता को गुलाल चढ़ाए बिना यहां होली की शुरुआत नहीं होती है. वहीं, चौसट्टी घाट का निर्माण इसी नाम से बंगाल के राजा प्रतापादित्य ने सोलहवीं शताब्दी में कराया था. जर्जर होने पर 18वीं शताब्दी में बंगाल के राजा दिग्पतिया ने इसका फिर से निर्माण कराया था.